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अधूरी आस, दैनिक लेखनी कहानी -27-Jun-2024

अधूरी आस 


दिन प्रतिदिन के क्रिया कलापों में बड़ा ही व्यस्त रहता हूं,

पर तुम्हारी यादों में गुम मस्त मलंग सदृश रहता हूं।

बस एक झलक पाकर तेरी, मन प्रफुल्लित हो उठता है,

तेरे आगे तो ये सारा जहां, मानो व्यर्थ सा लगता है।


पा भी न सके, खो भी न सके और न तेरे हो ही सके हम,

तुम्हारी आस नहीं रखें तो बताओ,फिर कैसे जियें हम ?

ये सांसें गवाह है कि ज़िंदगी में अभी कुछ तो होना शेष है,

पुर्नजन्म भी अपना होगा या नहीं, कुछ न जानते हैं हम।


न पल का भरोसा,ज़िंदगी-मौत का ठिकाना न जानते हैं हम,

ये सांसें भी न जाने कब छूट जाएगीं, फिर भी जी रहे हैं हम।

कशमकश बड़ी है, पर करना है वही जो मन में ठानी है,

बेवजह एक झूठी सी आस संजोए, मन में जी रहे हैं हम।


हर दुखों से हैं अंजान, हर सुखों से बेखबर,

सुख-दुख के दो पाटों के बीच,पिस रहे हैं हम।

फिर भी सहर्ष गम का जहर पी रहे हैं हम,

अधूरी आस व खुशियों की फरियाद लिए जी रहे हैं हम।


कहनी थी मुझे कुछ तुमसे  हमारी  बातें,

सुननी थी मुझे  कुछ तुमसे तुम्हारी बातें।

पर कुछ कह न पाए ,रह ग़यीं अधूरी आस इस दिल की,

और अधूरी सी ही रह गयीं हमारी, तुम्हारी बातें।


सच कहूं तो ,उस इकरार की बातें,अब भी बाकी है,

ज़िन्दा है अभी, उस मुलाकात की याद अब भी बाकी है।

साथ निभाने की कसमें,जो खायी थीं तुमने मेरे संग,  

कैसे कर सकते इन्कार, अधूरी आस अब भी बाकी है।


हमसफ़र बनने की कोशिशें,अधूरी अब भी बाकी है,

पर, साथ बिताए हुए पलों की याद अब भी बाकी है।

मुमकिन, कि हर सपने को मुक्कमल अंजाम हो हासिल, 

पर मिले दर्द का एहसास अब भी बाकी है।


करनी है तुझसे सदियों तक, कुछ बातें अब भी बाकी है,

आयेगी भोर की किरण प्रिये, कुछ रातें अब भी बाकी है।

सोचता हूं कि इन एहसानों को, कैसे चूकता करूं,

दिल में जगी वो अधूरी आस अब भी बाकी है।


~~~~राजीव भारती

पटना बिहार (गृह नगर)


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2 Comments

Mohammed urooj khan

28-Jun-2024 12:52 AM

👌🏾👌🏾👌🏾

Reply

राजीव भारती

28-Jun-2024 10:56 PM

जी आपका सहृदय स्वागत अभिनंदन।

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